Yusuf Hamied

Author: Sunaina Sarkar


आज हम आपको बताने वाले हैं सिपला कंपनी जो की भारत की सबसे पुरानी कंपनी है को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले युसूफ हामिद के बारे में जिन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के बात अपने पिता की कंपनी में काम करने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी पड़ी थी और कंपनी में काम करने के 1 साल बाद उन्हें सैलरी दी गई थी इस बात से यह साबित होता है यह साबित होता है कि यह सब हमें अपनी जिम्मेदारियों को लेकर बहुत सीरियस थे और हर काम को ईमानदारी से करना जानते थे जिन्हें गरीबों का मसीहा कहना भी गलत नहीं होगा आइए जानते हैं यह सब हमें और उनकी गरीबों के लिए किए हुए योगदान के बारे में सिपला कंपनी की शुरुआत 1935 में यूसुफ के पिता अब्दुल हमीद ने की थी cipla कंपनी का फुलफॉर्म द केमिकल इंडस्ट्रियल फार्मास्यूटिकल लैबोरेट्रीज है सिपला कंपनी ज्यादातर इस बात के लिए जानी जाती है कि यह बाकी कंपनियों के मुकाबले सस्ते दामों पर बेहतरीन दवाइयां बनाती है इसी बीच 25 जुलाई 1936 युसूफ हामिद का जन्म हुआ उन्होंने अपनी स्कूलिंग कैथेड्रल एंड जॉन कोंनों स्कूल से की और कॉलेज की पढाई Stजेवियर मुंबई से की और फिर इंग्लैंड के कैंब्रिज कॉलेज से PHD करने के बाद उन्होंने अपने पिता के बिजनेस को ज्वाइन करने का सोचा लेकिन उस समय के कानून के मुताबिक उन्हें अपने ही पिता के प्रश्न उसको जॉइन करने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी पड़ी यूसुफ को कंपनी के मालिक का बेटा होने के बावजूद भी एक नॉर्मल एंप्लॉय की तरह ही काम कराया जाता था और जो रिस्ट्रिक्शंस और रिस्पांसिबिलिटी एक नॉर्मल एंप्लॉय के कंधे पर होती थी वही रिस्पांसिबिलिटी और इंस्ट्रक्शंस उनके कंधों पर भी होती थी यहां तक की उन्होंने जब अपनी कंपनी में काम करना शुरू किया था तो उन्हें मंथ की सैलरी नहीं मिलती थी बल्कि 1 साल अपनी ही कंपनी में काम करने के बाद उन्हें सैलरी दी गई शायद इसी वजह से व्हाट्सएप रन बने और उन्होंने अहम भूमिका निभाई सिपला कंपनी को बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए ऐसे ही काम करते करते और अच्छी सर्विस एस अपने कंपनी को देते हुए उनके वक्त के साथ प्रमोशंस हुए और साल 1989 मैं उन्हें सिपला कंपनी का चेयरमैन बना दिया गया चेयरमैन बनने के बाद जब उन्होंने अपना कार्यभार संभाला तो उन्होंने गरीबों के लिए भी काम किया वह उनका बिल व्यक्तियों में से हैं जिन्हें अपने काम पर बहुत नाज है जो खुलकर बाकी की सारी दवाइयां बनाने वाली कंपनियों पर दावा करते हैं उनकी कंपनी वही दवाइयां उनसे कम दाम में गरीबों के लिए उपलब्ध करवाती है क्योंकि वह अपने काम को लोगों की मदद करने में लगाते हैं जिनसे उनकी मुश्किलें हल हो उन दवाइयों का कोई काम नहीं होता है जो आम जनता खरीदी ना पाए और उन्होंने यह करके भी दिखाया है उन्होंने गरीब देश के लोगों के लिए सस्ते दामों पर दवाइयां उपलब्ध करवाइए सपना पहली कंपनी है जिसने अफ्रीका में AIDS से पीरियड लोगों के लिए सिर्फ $1 में दवाइयां उपलब्ध करवाई और यूसुफ के दरियादिली का अंदाजा हम उनकी इस बात से लगाना चाहते हैं कि उन्होंने यह बात कही थी कि अगर कोई भी कंपनी aids की दवाई सस्ते में बनाना चाहती है तो वह उस दवाई को बनाने का फार्मूला मुफ्त में देने के लिए तैयार है यूसुफ ने कैंसर की दवाइयों दाम 2012 में 75 फीसदी कम करदी उन्होंने भारतीय पेटेंट कानून में बदलाव करने की शुरुआत की और इसके अंतर्गत उन्होंने 1961 में इंडियन ड्रग मैनयूफैक्चर एसोसिएशन का गठन किया और कानूनी रूप से 1972 में होनहे यह आजादी मिल गई कि वह देश में दवाई बनाएंगे और बेचेंगे जिनकी देश को जरूरत है युसूफ जसपी बीमारी को बढ़ता देखते हैं और लोगों को उन बीमारियों से पीड़ित देखते हैं तो वह उस बीमारी की दवाइयों को सस्ता कर लोगों तक ज्यादा से ज्यादा पहुंचाने की कोशिश करते हैं सिपला कंपनी दुनिया के करीब 170 देशों में अपनी दवा बेचती है सकला पहले कंपनी है जिन्होंने CFC फ्री इनहेलर शुरू किए सपना ने एक ऐसी टेक्निक की खोज की जिससे बिना किसी तकलीफ के और बिना हाथ लगाए सीने के कैंसर का पता लगाया जा सके उनके इन सब कार्यों के लिए उन्हें बहुत से पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है उनको 2005 में पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है और साल 2012 में बिजनेस के कैटेगरी में उन्हें CNN IBM इंडियन ऑफ़ दी ईयर के नाम से भी नवाजा जा चुका है 2013 में एनडीटीवी ने दुनिया के सबसे महान 25 लोगों में उनका नाम शामिल किया |