Veer Abdul Hamid

Author ; Zeba



इंडियन हिस्ट्री में जब भी जंग का जिक्र किया जाता है तो वीर अब्दुल हमीद को जरूर याद किया जाता है क्योंकि अगर इंडिया में होने वाली जंगों की बात की जा

रही है और वीर अब्दुल हमीद का नाम ना आए यह बिल्कुल नामुमकिन सी बात है क्योंकि वीर अब्दुल हमीद हिंदुस्तान का वो जांबाज और बहादुर सिपाही था जिसकी बहादुरी के किस्से ना सिर्फ छोटे-छोटे बच्चों को सुनाए जाते हैं बल्कि आज भी जब भी कोई इंडियन आर्मी में शामिल होने जाता है उसके दिल में बस यही ख्वाब होता है कि वह भी वीर अब्दुल हमीद के जैसा बहादुर और जांबाज बने। वीर अब्दुल हमीद हिंदुस्तान में रहने वाले हर इंसान के लिए एक रियल हीरो है इनका जन्म 1 जुलाई 1933 को गाजीपुर में हुआ इनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था जो सिलाई का काम करते थे जब वो थोड़े बड़े हुए तू अपने पिता के साथ सिलाई की दुकान में काम करने लगे लेकिन अब्दुल हमीद का सिलाई करने में बिल्कुल दिल नहीं लगता था। उनका बचपन से ही कुश्ती दंगल और दांव पेचों में लगता था क्योंकि पहलवानी उनके खून में थी जो विरासत के रूप में मिली उनके पिता और नाना दोनों ही पहलवान थे वीर हमीद को शुरू से ही लाठी चलाना कुश्ती करना और बाढ़ में नदी को तैरकर पार करना और सोते समय फौज और जंग के सपने देखना इसके साथ ही गुलेल से पक्का निशाना लगाना उनकी खूबियों में था और वह इन सभी चीजों में सबसे आगे रहते थे। उनकी एक खासियत थी कि उन्हें दूसरों की मदद करना अच्छा लगता था और अन्याय के खिलाफ आवाज उठा देते हो उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते एक बार उनके गांव में एक ऐसी घटना हुई जब एक गरीब किसान की फसल को जबरदस्ती वहां के जमीदार के लगभग 50 गुंडे काट कर ले गए जब यह बात हमीद को पता चली तो उन्होंने इस बात को बर्दाश्त नहीं किया और उन 50 गुंडों से अकेले डर गए जिसकी वजह से उन सभी गुंडों को गांव से भागना पड़ा और उस गरीब किसान की फसल बच गई एक बार तो उन्होंने गांव में आई बाढ़ मैं डूबती हुई दो युवतियों की जान बचाई उस वक्त उन्होंने अपनी जान की बिल्कुल परवाह नहीं की और अपने साहस का परिचय दिया। अब्दुल हमीद बचपन से ही एक सिपाही बनना चाहते थे वह अपने दादी से कहते थे मैं फौज में भर्ती हूंगा। अब्दुल हमीद ने 20 साल की उम्र में वाराणसी मैं आर्मी ज्वाइन की थी और उन्हें ट्रेनिंग के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। भारत चीन के युद्ध के दौरान अब्दुल हमीद को 7th बटालियन में इन्फैंट्री ब्रिगेड का हिस्सा रहे किसने नमका-छू के युद्ध में पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) से लोहा लिया था। साल 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के आसार बने तो उनको अपनी छुट्टी बीच में ही छोड़ कर वापस ड्यूटी ज्वाइन करनी पड़ी जब साल 1965 का हमला पाकिस्तान की ओर से किया गया तो वे ऑपरेशन जिर्बाल्टर स्कीम के चलते कश्मीर की और सीमा से सटे इलाकों मे पाकिस्तान ने घुसपैठ करना शुरू की। 5 से 10 अगस्त 1965 तक बढ़ती तादाद में पाक फौजी और नागरिक भारतीय सीमा में दाखिल हो चुके थे सुरक्षा एजेंसियों ने जमीन घुसपैठियों को पकड़ा तो उन्होंने बताया कि पाकिस्तान कश्मीर हड़पने के उद्देश्य 30000 गुल्ले सैनिक तैयार कर सीमा पर भेजने वाला है इसी ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान ने 8 सितंबर 1965 की रात को भारत पर हमला कर दिया क्योंकि उससे इस बात का घमंड था कि उसके पास अमेरिका के द्वारा दिए गए पैटन टैंक है। लेकिन पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए भारतीय सैनिक तैयार थे जिसमें वीर अब्दुल हमीद भी शामिल थे। उसमें वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में सेना की सबसे पहली लाइन मैं तैनाती थे पाकिस्तान ने पैटर्न 10 को की मदद से खेमकरण सेक्टर के असल उताड गांव पर हमला कर दिया। उस समय की परिस्थिति भारत के पक्ष में नहीं थी क्योंकि भारतीय सैनिकों के पास सिर्फ 3 नोट 3 राइफल, एलएमजी थी जिससे पाकिस्तान की पैटन टैंको का मुकाबला करना बेहद मुश्किल था हवलदार वीर अब्दुल हमीद के पास गन माउंटेड जीप थी जो पैटरन थैंक्यू के सामने इस तरह की जैसे हाथी के सामने चींटी। लेकिन वीर अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउंटेड जीप मैं बैठकर अपनी गन से पैटन 10 को की कमजोरी पर निशाना लगाकर उन्हें ध्वस्त करना शुरू किया ।हमीद के साथी बताते हैं कि उन्होंने एक बार में 4 टैंक उड़ा दिए थे। इसके बाद उन्होंने तीन और टैंक नष्ट किए। 1 और 10 को निशाना बना रहे थे तो एक पाकिस्तानी सैनिक की नजर उन पर पड़ गई दोनों तरफ से फायर हुए हमीद ने 8वां पाकिस्तानी टैंक भी उड़ा दिया लेकिन एक गोला लगने से उनकी जीत के भी परखच्चे उड़ गए थे और वह गंभीर रूप से घायल हुए और अंत में 10 सितंबर को वीर गति को प्राप्त हो गए इस तरह से भारत मां का यह वीर सपूत देश की रक्षा करने के लिए मर कर भी अमर हो गया था कहते हैं कि भारत वीरों की भूमि है और यह कहावत सिर वीर अब्दुल हमीद जैसे वीरों से ही पूरी होती है। 28 जनवरी 2000 को भारतीय डाक विभाग द्वारा वीरता पुरस्कार विजेता के सम्मान में 5 डांक टिकटों के सेट मैं ₹3 का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया गया इस डाक टिकट पर रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद का एक फोटो बना हुआ था। फोर्थ ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की याद में उनकी कब्र पर एक समाधि का निर्माण किया और हर साल उनकी शहादत के दिन वहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। उत्तर निवासी गांव में एक डिस्पेंसरी, लाइब्रेरी और स्कूल चलाते हैं। सैन्य डाक सेवा ने 10 सितंबर 1979 को उनके सम्मान में एक विशेष कवर जारी किया।