Srinivasa Ramanujan

आज हम बात करेंगे भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के बारे में जिन्होंने अपनी 32 साल की उम्र में मैथ की फील्ड में बहुत सारे रिसर्च की है आधुनिक युग के इतने बड़े मैथमेटिशियन ने कोई विशेष पढ़ाई नहीं की थी उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया था उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गरीबी से जूझ कर बताएं स्कूल के एग्जाम्स में भी फेल हो गए थे जिसकी वजह से उन्हें स्कॉलरशिप मिलना बंद हो गई थी और इसके चलते उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पूरी जिंदगी उनकी हेल्थ ने भी उनका साथ नहीं दिया नौकरी के लिए भी उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी लेकिन उनका भरोसा भगवान पर अटूट था और मैथ में उनकी लगन हमेशा होने आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करती है और इतनी कठिनाइयों के बावजूद भी उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी रामानुजन ने 11 साल की उम्र में स्कूल में रहते हुए कॉलेज लेवल की मैथ की प्रॉब्लम सॉल्व कर दिया करते थे। 13 साल की उम्र में उन्होंने एडवांस ट्रिग्नोमेट्री को रट लिया था। इसके बाद 32 साल की उम्र में मैथ की तकरीबन 3900 इक्वेशन की खोज की इनके जन्मदिन को नेशनल मैथमेटिक्स डे के रूप में मनाया जाता है। रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु में हुआ था इनका बचपन Kumbakonam में बीता आज भी उनके घर को एक म्यूजियम के रूप में देखा जा सकता है । उनकी शुरुआती पढ़ाई वहां की एक छोटे से स्कूल से हुई उन्हें पढ़ाई लिखाई का शौक बचपन से था और मैथ का सब्जेक्ट उनका फेवरेट सब्जेक्ट था रामानुजन ने 10 साल की उम्र में प्राइमरी का एग्जाम दिया और पूरे जिले में सबसे ज्यादा नंबर लाने वाले स्टूडेंट बने इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए। इसके आगे की पढ़ाई के लिए टाउन हायर सेकेंडरी स्कूल में एडमिशन लिया बचपन से ही उनके दिमाग में सवाल आते थे जैसे कि दुनिया में पहला इंसान कौन था, पृथ्वी और बादल की बीच की दूरी कितनी है जैसे और भी सवाल उनके दिमाग में आते थे उनके सवाल कई बार उनके टीचर्स को बहुत ज्यादा अटपटे लगते थे जिसकी वजह से उन्हें कई बार डांट खानी पड़ती थी लेकिन रामानुजन का स्वभाव इतना अच्छा था कि कोई भी उनसे ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह सकता था बहुत जल्द ही उनका टैलेंट स्कूल में सबको दिखाई देने लगा 10th main acche marks laane ki vajah se उन्हें स्कॉलरशिप मिली जिससे उनके आगे की पढ़ाई काफी आसान हो गई लेकिन आगे चलकर उनके सामने एक बहुत बड़ी परेशानी आई रामानुजन मैथ को इतना ज्यादा टाइम देने लगे जिसके चलते वह दूसरे सब्जेक्ट पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे थे यहां तक की वह दूसरे सब्जेक्ट के क्लासेस में मैथ के क्वेश्चनस को सॉल्व किया करते थे जिसकी वजह से 11th क्लास में मैथ के सब्जेक्ट को छोड़कर बाकी सभी सब्जेक्ट में फेल हो गए जिसके चलते उन्हें स्कॉलरशिप मिलना बंद हो गई उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और ऊपर से स्कॉलरशिप मिलना भी बंद हो गई रामानुजन के लिए वह एक बहुत कठिन समय था जिसके चलते उन्होंने मैथ की ट्यूशन लेना शुरू किया कुछ टाइम के बाद साल 1907 में रामानुजन ने 12th क्लास की एग्जाम दी। और वह उस पर भी फेल हो गए जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया स्कूल छोड़ने के बाद उनकी जिंदगी में 5 सालों तक बहुत कठिन समय रहा उनके पास ना कोई नौकरी थी और ना ही किसी के साथ काम करके अपनी रिसर्च को इंप्रूव करने का मौका भी नहीं था लेकिन उनका भगवान पर अटूट विश्वास था और गणित के प्रति उनकी लगन ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया। इतनी परेशानियों के चलते भी। उन्होंने अकेले ही अपने रिसर्च को जारी रखा। साल 1908 में नौकरी की तलाश में मद्रास आ गए लेकिन 12th क्लास पास ना होने की वजह से रामानुजन को नौकरी नहीं मिली और उसी बीच उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई जिससे उन्हें वापस घर लौट कर आना पड़ा। तबीयत ठीक होने के बाद रामानुजन मद्रास वापस आए और फिर से नौकरी की तलाश करने लगे किसी के कहने पर वो के deputy collector श्री वीर रामास्वामी अय्यर से मिले अय्यर मैथ के बहुत बड़े विद्यमान थे उन्होंने रामानुजन के टैलेंट को पहचाना और उन्होंने जिलाधिकारी से कहकर ₹25 महीने की स्कॉलरशिप दिलवाई इस स्कॉलरशिप की मदद से रामानुजन ने मद्रास में 1 साल रहते हुए अपना पहला रिसर्च पब्लिश किया जिसका टाइटल था properties of Bernoulli numbers अपना पहला रिसर्च पब्लिश करने के बाद उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी की और इस नौकरी में काम का बूझ ज्यादा नहीं था और यहां पर उन्हें अपने मैप के लिए भी टाइम मिल जाता था रामानुजन रात भर जाग जाग कर नए-नए मैथ के फार्मूला लिखा करते थे और उसकी थोड़ी देर के बाद वो ऑफिस चले जाते थे रामानुजन का रिसर्च ऐसे लेवल पर आ गया था बिना किसी मैथमेटिशियन की हेल्प के बिना काम को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था इसी टाइम पर रामानुजन ने अपने theory के कुछ formulas एक प्रोफेसर को दिखाएं और उनसे हेल्प मांगी तो उनका ध्यान लंदन के प्रोफेसर हार्डी की तरफ गया professor Hardy World के famous mathematician मे से एक थे। और वह रामानुज उनके साथ काम करने के लिए तैयार हो गए और इसके बाद आर्थिक सहायता करते हुए उन्हें इंग्लैंड बुलाया रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह दोस्ती दोनों के लिए बेहद फायदेमंद रही उन दोनों ने मिलकर बहुत सारी रिसर्च की उसी बीच रामानुजन की एक इंपॉर्टेंट रिसर्च की वजह से Cambridge University ने उन्हें b.a की degree दी। इसके बाद Ramanujan को royal society का fellow बनाया गया ऐसे टाइम पर जब भारत गुलामी में जी रहा था उस टाइम पर एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसाइटी की सदस्यता मिलना एक बहुत बड़ी बात थी कुछ टाइम के बाद एक बार फिर इंग्लैंड में रामानुजन की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई और checkup करवाने के बाद डॉक्टर ने बताया कि उन्हें टीवी हो गया है उस टाइम पर टीवी की बीमारी की कोई दवा नहीं थी डॉक्टर की सलाह पर वो इंडिया वापस आ गए क्योंकि इंग्लैंड का मौसम उनकी सेहत के हिसाब से बिल्कुल भी अच्छा नहीं था। इंडिया वापस आने के बाद भी उनकी तबीयत ठीक नहीं हुई दिन-ब-दिन उनकी तबीयत बिगड़ती गई आखिर में अपनी पूरी जिंदगी गणित में समर्पित करने के बाद 26 अप्रैल 1920 को महज 33 साल की उम्र में रामानुजन ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी जिंदगी भले ही छोटी थी लेकिन उनके कारनामे बेहद बड़े है।