Paan Singh Tomar

चंबल नदी जो गवाह है ऐसी कहानियों की जो अब तक अनसुनी थी आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे फौजी की जो बागी हो गया था, कहानी एक खिलाड़ी की और कहानी डकैत की। पान सिंह तोमर ने शुरुआत में तो लोगों का प्यार और सम्मान जीता बीते समय के बीच उन्हें लोगों की नफरत के बीच उन्हें अपना जीवन बिताना पड़ा। साल 1932 में मध्य प्रदेश में पान सिंह का जन्म हुआ पान सिंह को बचपन से ही देश सेवा करने का बहुत शौक था और इसी के चलते उन्होंने भारतीय सेना ज्वाइन की और उनकी पहली जॉइनिंग उत्तराखंड के रुड़की शहर में सूबेदार की पोस्ट पर हुई। इंडियन आर्मी जॉइन करने के बाद उन्हें इस बात का अंदाजा हो कि वह एक सिपाही होने के साथ ही एक बेहतर एथलीट भी है वह बिना थके हुए बहुत दूर तक दौड़ सकते थे ये उनके अंदर टैलेंट था। और इसी के चलते उन्हें रनिंग कंपटीशन के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगी उन्होंने एक सिपाही का फर्ज निभाने के साथ ही उन्होंने नेशनल इंटरनेशनल Races जीत कर देश का नाम रोशन किया पान सिंह साल 1958 में टोक्यो एशियन गेम्स में इंडिया की तरफ से खेले थे और वह 7 सालों तक स्टेपलचेंजिंग नेशनल चैंपियन भी रहे। इसके साथ ही उन्होंने 9 मिनट 2 सेकंड है 3000 मीटर की दौड़ का एक रिकॉर्ड कायम किया था जिसे 10 सालों तक कोई नहीं तोड़ पाया था खेल में उनके अच्छे परफॉर्मेंस को देखते हुए साल 1962 और 1965 में हुए युद्ध में भी उन्हें लड़ने की इजाजत नहीं थी क्योंकि देश को अपने इस जांबाज खिलाड़ी को खोना नहीं चाहता था और उसके बाद साल 1972 में पान सिंह तोमर ने रिटायरमेंट ली रिटायरमेंट के बाद अपनी बाकी की जिंदगी बिताने के लिए अपने गांव वापस गए लेकिन उनकी जिंदगी में एक टर्निंग प्वाइंट आया उस समय उनके गांव में एक दबंग बाबू सिंह के साथ उनका जमीनी विवाद हुआ बाबू सिंह उस गांव के लोगों डरा कर रखता था और उसके पास सात लाइसेंसी बंदूकें थी दरअसल पान सिंह की जमीन बाबू सिंह के पास गिरवी रखी हुई थी जब वह अपनी जमीन वापस लेने गए तो उन्होंने साफ तौर पर वापस लौटाने से मना कर दिया इस बात को समझाने के लिए पान सिंह ने बहुत सी कोशिश की लेकिन उसको कोई फायदा नहीं हुआ सिवा निराशा के उनके हाथ कुछ नहीं लगा पान सिंह ने गांव की पंचायत से भी इस मुद्दे के सोल्यूशन के लिए गुहार लगाई थी पंचायत में यह फैसला किया जमीन छुड़वाने के लिए पान सिंह को3000 बाबू सिंह को देने होंगे पान सिंह तोमर ने यह पैसे देने से मना कर दिया क्योंकि वह इस फैसले से बिल्कुल भी खुश नहीं थे इस बात से उस गांव की दबंग को बहुत गुस्सा आया और वो पान सिंह से बदला लेने के लिए पान सिंह जब घर में नहीं थे तो बाबू सिंह ने उनकी मां को खूब मारा पीटा जब पान सिंह वापस लौटे और उन्होंने अपनी मां को चोटिल देखा जिसे देखकर पान सिंह तोमर अपना गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पाए और उसके बाद उन्होंने बदला लेने का फैसला किया और यहीं से शुरू है उनके बाकी बनने की कहानी इसके बाद पान सिंह ने अपनी बंदूक से बाबू सिंह को मार दिया और उसके बाद उनकी छवि एक सैनिक से बदलकर एक बागी में तब्दील हो गई। इसके बाद पान सिंह तोमर नहीं चंबल की घाटी में बना ली और खुद को बागी घोषित किया जो एक टाइम का पर देश के लिए दौड़ते थे वहीं पर चंबल की कांटो भरी जमीन पर झुकते हुए नजर आए इसके बाद उन्हें हत्या और खतरनाक डकैती के लिए पान सिंह तोमर का नाम जाना जाने लगा। और वो इतने खतरनाक डकैत बन चुके थे उनके नाम से पुलिस कांपती थी। और उस समय की सरकार नहीं पान सिंह को पकड़ने के लिए10000 का इनाम रखा था 1 अक्टूबर 1981 मैं एक सरकारी एनकाउंटर में मार दिए गए थे उन्हें पकड़ने के लिए बीएसएफ की 10 कंपनियां, एसटीएफ की 15 कंपनियां, और जिला पुलिस ने मिलकर काम किया था। पर इनकी जिंदगी के ऊपर एक मूवी भी बनाई गई है जो लोगों ने खूब पसंद की थी। पान सिंह तोमर जब भी बंदूक से निशाना लगाते थे तपन का निशाना चुकता नहीं था पान सिंह के बेटे शिव राम ने भी हमेशा कहा है कि उनके पिता डकैत नहीं थी उन्हें इस शब्द के इस्तेमाल से आपत्ति है शिवराम के मुताबिक उनके पिता पेशेवर अपराधी नहीं थे वह बाकी थे उन्हें हालात ने मजबूर किया था नहीं तो वह बागी भी नहीं होते।