Droupadi Murmu

देश के 15 वें राष्ट्रपति के लिए हुए चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू ने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की। वो अब भारत की 15 राष्ट्रपति बन चुकी है विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को द्रौपदी मुर्मू ने भारी वोटों के अंतर से हराया द्रौपदी मुर्मू ने इस चुनाव में २824 voto se jeet हासिल ki। तो यशवंत सिन्हा को 1877 वोट मिले। और इस तरह द्रौपदी मुरमू बनी देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति। द्रोपदी मुर्मू का जन्म उड़ीसा के मयूरभंज जिले मैं 20 जून 1958 को एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ उनके पैदा होते ही समस्याएं उनके स्वागत के लिए खड़ी थी परिवार गरीबी में जी रहा था और बहुत कम संसाधनों से इस बीच में जिंदगी बिता रहा था और उनके पिता बिरंचि नारायण टूडू अपनी पंचायत के मुखिया रहे। द्रौपदी मुरमू झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल थी और अब वह देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बन चुकी है झारखंड में सबसे ज्यादा लंबे समय तक राज्यपाल रही उनका कार्यकाल 6 साल से भी ज्यादा रहा रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव रायरंगपुर में रहती थी। द्रोपति ने अपने गांव से शुरुआती पढ़ाई पुरी इसके बाद भुवनेश्वर के रामा देवी महिला महाविद्यालय से ग्रेजुएशन की डिग्री ली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक टीचर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और कुछ टाइम तक उन्होंने इसमे काम किया। इसके बाद उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उड़ीसा सरकार के लिए क्लर्क की नौकरी से की उस दौर में मुर्मू सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक थी द्रोपति मुर्मू ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत एक वॉर्ड काउंसलर के तौर पर साल 1997 में की साल 2000 और 2009 में रायरंगपुर विधानसभा सीट बीजेपी के टिकट पर वह दो बार विधायक भी बनी। पहली बार विधायक बनने के बाद साल 2000 से 2004 तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार की राज्य मंत्री रही। साल 2015 से 2021 तक झारखंड की राज्यपाल भी रही और वह राज्य की पहली महिला गवर्नर बनी। द्रौपदी मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू के साथ हुई साल 2009 में उनके ऊपर अचानक से दुखों का पहाड़ टूट पड़ा 27 अक्टूबर को उनके घर लाश मिली जब उसे हॉस्पिटल लेकर जाया गया तो डॉक्टर ने कहा अब इस दुनिया में नहीं है यह द्रोपति मुर्मू के बेटे थे लक्ष्मण मुरमू इस रहस्यमयी मौत से पर्दा नहीं उठ पाया और इसके 4 साल के बाद उनके दूसरे बेटे की रोड एक्सीडेंट में जान चली गई अपने दोनों जवान बेटों की मौत से मुर्मू जी उभर भी नहीं पाई थी कि इसके बाद साल 2014 में इस दुनिया को अलविदा कह गए उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई थी मुर्मू की और एक बेटी है जिसका नाम इतिश्री मुर्मू है जो रांची में रहती है जाहिर सी बात है कोई भी इंसान इतने बड़े पद पर यूं ही नहीं पहुंचा था उसके पीछे उनकी मेहनत, लगन और संघर्ष शामिल होता है अपनी जिंदगी में ऐसी चीजों का सामना कर चुके होते हैं कि अगर वह ने पीछे मुड़कर देखें तो शायद उनकी रूह कांप जाए इन सभी परेशानियों का सामना करते हुए मुर्मू ने खुद को इतना मजबूत बनाया जिससे वह यह मुकाम हासिल कर पाईं है। हमें द्रोपति मुर्मू से कुछ चीजें सीखनी चाहिए जैसे हालातों के सामने कभी कमजोर ना पड़े बल्कि उन हालातों से लड़कर खुद को मजबूत बनाएं जिसे आप अच्छे रास्ते पर चलकर खुद को एक अच्छे मुकाम तक पहुंचा पाए द्रोपति मुर्मू ने खुद को संभालने के लिए मेडिटेशन का सहारा लिया वो राजस्थान के माउंटआबू में ब्रह्मकुमारी संस्थान में जाने लगी और कई कई दिनों तक वह मेडिटेशन क्या करती उन्होंने राजयोग भी सीखा और वह संस्थान के सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगी जिससे वह खुद को और भी ज्यादा मजबूत बना सके द्रौपदी मुर्मू ने खुद के ऊपर दुखों को हावी नहीं होने दिया बल्कि वह दुखों के ऊपर हावी हुई और एक चट्टान की तरह उन्होंने दुखो का सामना किया...