Dilip Sanghvi

Author: Zeba


मार्केट बना लिया। इस के बाद सन फार्मा के प्रोडक्ट्स देश के कोने कोने में पहुंचने लगे। ये वो टाइम था जब इंडियन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री मे ज्यादातर पेटेंट और हाई मार्जिन वाले मेडिसिन पर मल्टीनेशनल या फिर सिपला रैनबैक्सी जैसी कंपनियों का मोनोपॉली था। लेकिन फिर भी सन फार्मा कंपनी के दिलीप सांघवी के नाम का डंका बजता है इसके पीछे की अहम वजह यह है दिलीप ने अपने कारोबार को हमेशा लोव कॅम्पटीशन और बिना पेटेंट वाली जेनेरिहौसला होना चाहिए बिजनेसेस तो कभी भी शुरू किए जा सकते हैं आज हम बात करने वाले हैं दिलीप सांघवी की जिन्होंने ₹10000 उधार लेकर अपने बिजनेस की शुरुआत की और अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने खड़ी की इंडिया की नंबर वन और वर्ल्ड की चौथी नम्बर की जेनरिक दवाई बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी सन फार्मा दिलीप संघवी का ऐसा मानना है कि तूफान कभी भी आ सकता है उससे निपटने के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए साल 2015 में एक ऐसा टाइम आया जब इन्होंने इंडिया की सबसे अमीर मुकेश अंबानी को अमीरी के मामले में सबसे पीछे छोड़ दिया था और यह भारत के सबसे अमीर इंसान बन गए थे और आज भी इनकी गिनती इंडिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में टॉप टेन में आती है। दिलीप सांघवी का जन्म 1 अक्टूबर 1955 को गुजरात में हुआ इन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई अमरेली से की और आगे की पढ़ाई करने के लिए वह कोलकाता के जहां उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटीज के भवानीपुर एजुकेशन सोसायटी कॉलेज से उन्होंने कॉमर्स में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। इनके पिता कोलकाता में जेनेरिक दवाइयों की सप्लाई करते थे अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिलीप ने भी दवाइयां सप्लाई करना शुरू किया कुछ सालों तक काम करने के बाद दिलीप के दिमाग में एक आईडिया आया कि जब में दूसरों की दवाइयों को घूम घूम कर भेज सकता हूं तो मैं क्यों ना अपनी खुद की दवाइयां बनाना शुरू करु। इसी के चलते उन्होंने साल 1982 में गुजरात के वापी में ₹10000 उधार लेकर अपने दोस्त के साथ सन फार्मा की शुरुआत की जब उन्होंने यह छोटा सा कारोबार शुरू किया तब उनके पास सिर्फ दो लोग थे वही दो कर्मचारी कंपनी की दवाइयां आसपास के व्यापारियों को मुहैया कराने का काम करते थे शुरुआत में इस कंपनी ने केवल 5 तरह की दवाइयां बनाई कंपनी का मार्केट अच्छा चला और पहले साल में ही इस कंपनी की सेल लगभग 1000000 रुपए की हुई उसके बाद उन्होंने कुछ और पैसे उधार लिए। और लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने प्रोडक्ट्स बढ़ाना शुरू किया इस कंपनी ने 4 साल के अंदर ही पूरे देश को अपना क दवाइयों पर धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाते जा रहे थे उन्होंने ऐसे प्रोडक्ट्स बनाएं जो इनके कंपीटीटर्स के प्रायोरिटी मैं नहीं था इसके बाद उन्होंने ब्रांड, प्राइसिंग स्ट्रेटेजी और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क पर ध्यान देना शुरू किया जिसके चलते इसी वजह से इनकी कंपनी कुछ ही सालों में कई गुना बड़ी हो गई इसके बाद साल 1989 में दिलीप सांघवी ने पड़ोसी देशों में दवाईयों को एक्सपोर्ट करना शुरू किया जिसने इनकी तरक्की में अहम भूमिका निभाई साल 1991 में इन्होंने अपनी कंपनी के लिए एक रिसर्च सेंटर खोला और इसके बाद साल 1994 में इन्होंने अपनी कंपनी का एक आईपीओ लॉन्च किया दिलीप का यह मानना था कि बिजनेस में रिस्क तो होता है लेकिन वे इतना कैलकुलेटेड होना चाहिए जिससे कंपनी को कोई नुकसान ना हो उन्होंने अपनी कंपनी के साथ गई इंडियन और विदेशी कंपनियों को एक्वायर भी किया है जो ज्यादातर कंपनियां घाटे में चल रही थी जो इन्होंने रिन्यूअल करके उस घाटे को फायदे में बदल दिया आज इनकी इनकम का बहुत बड़ा हिस्सा एनी कंपनियों से आता है यह दिलीप सांघवी की लीडरशिप का ही कमाल है कि लगभग 39 साल पहले शुरू हुई कंपनी सन फार्मा इंडिया की सबसे बड़ी फार्मा कंपनी बन गई है। पिछले कई सालों में इन्होंने बहुत सी ऐसी कंपनियों को एक्वायर किया है जिसके एक्वीजीशन से फार्मा सेक्टर के टॉप पर पहुंचा दिया है। और आज इनका सेल्स नेटवर्क 100 से भी ज्यादा देशों में फैला हुआ है। साल 2016 में इंडियन गवर्नमेंट के द्वारा इन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया और यह बताना बिल्कुल गलत नहीं होगी कोई भी व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है अपने जन्म से नहीं।