Brahmagupta

Brahmgupta

ब्रह्मगुप्त एक ऐसे फेमस मैथमेटिशियन है, जो maths के साथ-साथ astronomy और astrology में अपने बड़े से बड़े योगदान के लिए जाने जाते हैं. मैथ की हर फील्ड में इनकी रिसर्च आज भी Relevant है.

ब्रह्मगुप्त का जन्म राजस्थान के भीनमाल में 598 ईस्वी में हुआ था, जो उस समय maths और एस्ट्रोनॉमी सीखने का एक बड़ा केंद्र था। ब्रह्मगुप्त नेएस्ट्रोनॉमी पर five international mathematics principles के साथ आर्यभट्ट, लतादेव, प्रदुमन, वराहमिहिर, श्रीसेन जैसी कई एस्ट्रोनॉमी methods के काम का अध्ययन किया। उन्होंने 628 ई. में 30 वर्ष की आयु में ब्रह्मा-स्फुट सिद्धांत की रचना की। इस ग्रंथ में 1008 श्लोक हैं जिनमें 24 अध्याय हैं। एस्ट्रोनॉमी के साथ-साथ MATHS के फेमस चैप्टर जैसे Algebra, Geometry, trigonometry भी शामिल है। 67 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी अगली बुक खंडखद्या लिखी जो उस टाइम पर बहुत फेमस हुई। इस ग्रंथ में उन्होंने ज्योतिषी पंचांग का वर्णन किया है। बहुत प्रसिद्ध विज्ञान इतिहासकार जॉर्ज सार्टन के अनुसार, ब्रह्मगुप्त अपने समय के ग्रेटेस्ट इंडियन मैथमेटिशियन थे। उज्जैन में भी लंबे समय तक ब्रह्मगुप्त ने कार्य किया था। उन्होंने कई बार उज्जैन की वेधशाला के प्रमुख के रूप में भी काम किया था। उन्होंने अपनी गणितीय विधियों से पृथ्वी की परिधि ज्ञात की थी। प्राचीन भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मागुप्त ने भी गणित के क्षेत्र में अपने विचारों को लोगों तक पहुँचाने और उन्हें गणित के बारे में नई-नई बातें बताने के लिए अपने कार्यकाल में दो महान ग्रंथों की रचना की। उज्जैन के उनके एक वंशज भास्कर द्वितीय, जिन्हें भास्कराचार्य भी कहा जाता है, उन्होंने ब्रह्मगुप्त के सिद्धांतों को आधार बनाकर अपनी बुक की रचना की जिसमे उन्होंने ब्रह्मगुप्त की दोनों बुक पर अपनी टिप्पणी लिखी और उन्हें गणित चक्र चूड़ामणि यानी गणित के लिए रत्न से संबोधित किया।

ब्रह्मगुप्त की मृत्यु के कुछ समय बाद 712 ईस्वी में सिंध अरब खलीफाओ के कब्जे मे चला गया। इसके बाद भीलामारा साम्राज्य का नाश हो गया था। इसके बाद खलीफा अल मंसूर की मुलाकात महा ज्ञानी महर्षि कनक से हुई जिन्होंने ब्रह्मगुप्त के सभी ग्रंथों को संभाल कर रखा था। खलीफा अल मंसूर ने ब्रह्मगुप्त के ग्रंथों का अरबी में अनुवाद करवाया। उनके ग्रंथों को अरब देश में अल सिंध हिंद और अल अरकंद के नाम से जाना गया। इन ग्रन्थों के माध्यम से अरबों को पहली बार भारतीय गणित और ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त हुआ। इस प्रकार ब्रह्मागुप्त अरबी गणितज्ञों एवं ज्योतिषियों के गुरु थे, ब्रह्म स्फुट सिद्धांत उनका सबसे पहला ग्रंथ था, जिसमें शून्य को एक अलग पुस्तक के रूप में बताया गया था। इन ग्रंथों के माध्यम से, दशमलव श्रृंखला प्रणाली अंकगणित और चंद्रगुप्त के एल्गोरिथ्म दुनिया भर में फैल गई। उनके ग्रंथ में अलजेब्रा भी एक महत्वपूर्ण विषय है। उन्होंने अलजेब्रा का पर्याप्त विकास किया और इसका उपयोग ज्योतिष के प्रश्नों को हल करने के लिए किया। ज्योतिष विज्ञान भी विज्ञान और गणित पर आधारित है। ब्रह्मगुप्त ने चक्रीय चतुर्भुज में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। ब्रह्मगुप्त का सूत्र चक्रीय चतुर्भुज पर आधारित है। ब्रह्मा गुप्त ने अपने सूत्र में चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात करने के तरीके को समझाया था और दो तरह के सूत्रों का वर्णन किया था पहला सूत्र सन्निकट सूत्र जिसे अंग्रेजी में approximate formula कहते हैं और दूसरा सूत्र यथातथ सूत्र है इसे अंग्रेजी में exact formula कहते हैं। महान गणितज्ञ, ज्योतिषी और खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त की मृत्यु 668 ईस्वी में हुई थी। लेकिन आज भी गणित के क्षेत्र में ब्रह्मा गुप्त का योगदान सर्वोपरि माना जाता है और आज भी दुनिया उनके द्वारा किए गए सभीयोगदानो को याद करती है। गणित के क्षेत्र में ब्रह्मगुप्त के सूत्रबद्ध सूत्र को उनकी सबसे बड़ी देन माना जाता है।