Aryabhata

आर्यभट्ट एक ऐसा नाम जिसे सारी दुनिया जानती है क्योंकि उन्हें भारत के सबसे महान मैथमेटिशियन और astronomers में के रूप में जाना जाता है आर्यभट्ट ने जीरो की खोज की थी यह बात सारी दुनिया को पता है आर्यभट्ट ने हमें सिर्फ जीरो ही नहीं उससे बढ़कर ही बहुत कुछ दिया है जिसके ऊपर हम सब भारतीयों को बहुत गर्व है। आर्यभट्ट के जन्म से संबंध मैं कोई पुरुष तो नहीं है लेकिन यह कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के समय में असमक देश के कुछ लोग मध्य भारत में नर्मदा नदी और गोदावरी नदी के बीच में बस गए ऐसा माना जाता है आर्यभट्ट का जन्म भी 476 ईसवी में इसी जगह पर हुआ था। इसे आज हम पटना के नाम से जानते हैं। दरअसल आर्यभट्ट ने अपने पूरे जीवन में बहुत से ग्रंथ लिखे जिसमें से तीन ग्रंथों की जानकारी हमें हिस्ट्री में देखने को मिलती है उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों के नाम है आर्यभट्ट,आर्य- सिद्धांत और अल नन्फ़ है इन तीनों ग्रंथों में से सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट आर्यभट्ट ग्रंथ का माना जाता है जिसमें उन्होंने ASTRONOMY, ASTROPHYSICS, MATHMATICS, के बारे में लिखा है।और अगर आर्य-सिध्दांत की बात करें तो उसमें आर्यभट्ट ने एस्टॉनोमिकल कैलकुलेशन में इंवॉल्व होने वाले मैथमेटिकल कांसेप्ट बारे में लिखा हुआ है। लेकिन हिस्ट्री में ये खो चुका है। और इस दुनिया में इसका एक भी पार्ट मौजूद नहीं है। इस ग्रंथ की कुछ डिटेल्स हमें सातवीं और आठवीं सदी के मैथमेटिशियंस और एस्टॉनोमर्स के द्वारा लिखे गए उनके शास्त्रों में देखने को मिलती है। सभी ग्रंथों में सिर्फ आर्यभटीय ही एक ऐसा ग्रंथ है आज भी हमारे बीच वैसे ही मौजूद है जैसा उन्होंने लिखा था इस पूरे ग्रंथ में आर्यभट्ट ने सिर्फ 121 श्लोक ही लिखे हैं और इन 121 श्लोकों में उन्होंने इतना कुछ लिखा कि आज भी उन्हें हिस्ट्री में सबसे महान मैथमेटिशियन और एस्ट्रोनॉमर माना जाता है। दरअसल यह पूरा ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखा गया है संस्कृतिक ऐसी भाषा है जिसमें कम शब्दों में बहुत कुछ लिखा जा सकता है इसीलिए गिनती में भले ही 121 श्लोक कम हो लेकिन उनका ज्ञान बहुत ज्यादा है असल में आर्यभट्ट ग्रंथ चार भागों में बटा हुआ है गीतिका-पाद , गणित-पाद, काल-क्रिया-पाद, गोल-पाद है| गीतिका पाद के अंदर मैथमेटिक्स की बेसिक इंफॉर्मेशन है और साथ ही टाइम के इकाइयों के बारे में बहुत अहम जानकारी दी गई है जिससे हमें यह पता चलता है प्राचीन भारत में समय की गणना किस प्रकार की जाती थी गणित-पाद में जिसमें हमें आर्यभट्ट ने जोमेट्रिकल प्रिंसिपल, अर्थमैटिक प्रोग्रेशन और टर्मिनेट इक्वेशन अलजेब्रा के बारे में बताया गया है जिन्हें आमतौर पर सभी स्कूलों के अंदर पढ़ाया जाता है। काल- क्रिया- पाद जिसमें आर्यभट्ट ने मेजरमेंट ऑफ टाइम और दिनों के जाने के तरीके के बारे में बताया है। इस चैप्टर को पढ़ने के बाद यह पता चलता है कि आर्यभट्ट ही वह पहले इंसान थे जिन्होंने स्पीड = डिस्टेंस अपऑन टाइम का फार्मूला दिया है।गोल-पाद इसके आखिरी पार्ट में ये पता चलता है की आर्यभट्ट ने इस चैप्टर में हमें ग्रहों के बारे में बताया है जिसमें त्रिकोणमिति के सिद्धांत और ग्रहों गति मापने के तरीके और भौगोलिक गणनाओं जैसे बहुत सी चीजें शामिल है। दरअसल आर्यभट्ट ने कैसे सिस्टम को इन्वेंट किया था जिसके अंदर नंबर्स को शब्दों में बदलकर लिखा जा सकता था यह एक तरह का इंक्रिप्शन था जिसमें नंबर्स को संस्कृत के छोटे-छोटे अक्षरों या फिर शब्दों में बदल सकते थे।इसी इंक्रिप्शन का इस्तेमाल करके आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ आर्यभट्ट को लिखा था इस ग्रंथ में जो शब्द हमे नजर आते हैं और वो शब्द नहीं गणित के नंबर है। आर्यभट्ट ने पूरे इंक्रिप्शन सिस्टम को दो लाइनों में डिफाइन किया है दुनिया में आर्यभट्ट ही वह पहले इंसान थे जिन्होंने पाई की सही वैल्यू फोर्थ डिजिटल निकाली थी उन्होंने अपने कैलकुलेशन के जरिए पाई की वैल्यू 3 पॉइंट 14 15 तक बताई थी। साथ यह भी मेंशन किया था यह पाई कि एक्जे़ट वैल्यू नहीं है। इसके अलावा आर्यभट्ट नहीं सर्कल के एरिया को कैलकुलेट करने का फॉर्मूला भी बताया है। इस तरह के फार्मूले देने के लिए उन्हें इतिहास में सबसे महान मैथमेटिशियन में शुमार किया जाता है हम सभी ने अपने स्कूल या कॉलेज के टाइम में ट्रिग्नोमेट्री के अंदर साइन थीटा और कौस थीटा से जोड़ी मैथमेटिकल इक्वेशन को खुद सॉल्व किया। जिसमें हमें यह बताया गया है साइन वेव और साइन फंक्शन किस तरह से काम करते हैं और आपको ये जानकर बहुत हैरानी होगी इस साइन फंक्शन का इन्वेंशन भी आर्यभट्ट जी ने किया था उनके ग्रंथ आर्यभट्ट के अंदर उन्होंने एक श्लोक लिखा है जिसके बारे में अगर अच्छे से रिसर्च की जाए तो यह पता चलता है कि आर्यभट्ट उसमें साइन थीटा के बारे में ही बात कर रहे हैं आर्यभट्ट ने लगभग 300 साल पहले ज्योतिष विज्ञान की खोज की थी जब इतने एडवांस टूल्स भी अवेलेबल नहीं थे आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिक्रमा का बिल्कुल उचित समय ज्ञात किया यह अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा प्रतिदिन 24 घंटे में नहीं बल्कि देश घंटे 56 मिनट और 1 सेकेंड में पूरी कर लेती है इस प्रकार हमारा 1 साल 365 दिन 6 घंटे और 12 मिनट 30 सेकंड का होता है। चंदवा अपने अक्ष पर घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा के साथ ही सूर्य की परिक्रमा भी करता है और इसी दौरान सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी की परछाई चंद्रमा पर पड़ती है और वह सूर्यप्रकाश प्राप्त नहीं कर पाता और यह घटना चंद्र ग्रहण कहलाती है पृथ्वी की छाया जितनी बड़ी होती है ग्रहण भी उतना ही बड़ा कहलाता है।