Anil Agrawal

Author: Sunaina Sarkar


बात करने वाले हैं वेदांता ग्रुप के फाउंडर अनिल अग्रवाल के बारे में जानेंगे कि कैसे जिस व्यक्ति के पास कोई भी कॉलेज की डिग्री और ना ही प्रॉपर एजुकेशन और बिना किसी सपोर्ट के कैसे बने देश के सबसे अमीर व्यक्ति और इन्हें सेल्फ मेड बिल्लिनेयर ने अपने करियर की शुरुआत स्क्रैप डीलिंग से की थी और आज वो वेदांता ग्रुप कीय ओनर है महज 15 साल की उम्र में अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ जो अपने पिता के बिजनेस में उनका हाथ बताने लगे थे अनिल अग्रवाल का जन्म 24 जनवरी 1954 पटना में हुआ था पिता का नाम द्वारका प्रसाद अग्रवाल था जो उस वक्त के लोहे के बनाने का काम किया करते थे अनिल अग्रवाल बचपन से ही उन बच्चों में से थे जो हमेशा से ही कुछ अलग हटकर सोच रखते थे जिन्हें हर नहीं चीज के बारे में जानना होता और सब चीजें खुद से करनी होती थी 19 साल की उम्र में जब उन्होंने अपने माता पिता से कहा कि वह अपनी पढ़ाई छोड़ना चाहते हैं और और अपने घर का प्रश्न संभालना चाहते हैं उनकी इस बात को उनके घरवाले मान गए और वो उसी साल 1975 में मुंबई आ गए 1 दिन वैसे ही वह मुंबई की सड़कों पर घूम रहे थे जब उनकी नजर मुंबई के ओबेरॉय होटल पर पड़ी उन्होंने सोचा कि उन्हें एक न एक दिन तो एटलीस्ट इस होटल में बिताना है क्योंकि वह वक्त शाम का समय था और बहुत सी लाइट पटेल की खूबसूरती को दिखा रही थी जिसे देख उनके मन में इच्छा जगी लेकिन पढ़ाई पूरी ना होने की वजह से उन्हें इंग्लिश में बात करना नहीं आता था लेकिन उन्होंने इस चीज को अपने काम की रुकावट कभी नहीं बनने दिया अपने एक जाने वाले की मदद से उन्होंने उस पटेल में एक रूम ले लिया और वहां पर वह तकरीबन 3 महीने तक रुके क्योंकि उनहे लग रहा था की वो होटल उनके बिजनेस में काम आ सकता है वह वहां 3 महीने तक रुक तो गए लेकिन वह होटल बहुत महंगा था ओबेरॉय होटल में उस समय एक रात का किराया ₹200 था जिस वजह से उन्हें खाना खाने का बंदोबस्त बाहर से करना पड़ा और फिर उन्हें कुछ समय लगा अपने बिजनेस की सारी रिसर्च करने में उसके संदर्भ में सब कुछ जानने में फिर साल 1976 में वेदांता रिसोर्सेज की शुरुआत की कंपनी के शुरुआत में दूसरे राज्यों की केबल स्क्रैप में खरीदके मुंबई में बेचते थे उन्होंने इस काम को 10 साल तक किया लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि उन्हें किसी बैंक से लोन लेना चाहिए जिससे कि वह अपने बिजनेस में आगे बढ़त है लेकिन उस वक्त सारे बैंक्स ने उन्हें लोन देने से मना कर दिया फिर आखिर में उन्हें सिंडिकेट बैंक ने लोन दिया उसके बाद उन्होंने उन पैसों से एनमैलेड कॉपर वायर बनाने से काम शुरू किया और 10 साल लगाए अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए इसी दौरान उन्हें एक और आईडीया आया की उनकी कंपनी को ज्यादा फायदा तब होगा जब रॉ मटेरियल से एल्युमीनियम और कॉपर का मोल नियंत्रित होगा उन्होंने एल्युमीनियम और कॉपर खरीदने से बेहतर उनका कंस्ट्रक्शन करना शुरू कर दिया...इंडिया मैं बिजनेस करने के लिए फंड की जरूरत होती है और इंडिया में क्या पदों का कलेक्ट करना बहुत ही मुश्किल होता था और लंदन में कम्युनिटी बहुत अच्छी थी अनिल अग्रवाल लंदन गए और लंदन स्टॉक एक्सचेंज में वेदांता को लिस्ट करवाया और 876 मिलीयन डॉलर जुटाए और बस इतना ही नहीं साल 2014 लंदन में उन्होंने ऐलान किया कि वह अपनी कमाई का 75 % भारत में एजुकेशन के लिए दान करेंगे और वह भारत में ऑक्सफोर्ड से बड़ी यूनिवर्सिटी बनाना चाहते हैं नो प्रॉफिट नो लॉस के रूल्स पर चलेगी अंत में हम बस यही कहना चाहेंगे अनिल अग्रवाल के जिंदगी को देखते हुए जो सीख हमें मिली है वह है कि अपनी कमियों को अपने रास्ते की रुकावट कभी मत बनने दो जो नहीं हो सकता है उसके बारे में ना सोच कर जो हो सकता है उसमें अपने आप को जोंको।